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दशम भाव में गुरु का फल

गुरु ग्रह कुंडली के दशम भाव में गुरु ग्रह को कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है। गुरु ग्रह ,विवेक ,संतति -संतान ,धन ,विद्या आदि का कारक ग्रह माना जाता है। आज के इस लेख में हम गुरु ग्रह का दशम भाव में होने पर प्राचीन आचार्यों ने जो फल कहां है वह जानेंगे----- दशम भाव में गुरु की स्थिति अत्यंत शुभ बतलायी गई है। जातक माता- पिता का भक्त सत्य की राह पर चलने वाला चतुर एवं अत्यंत समृद्ध होता है। इसे हर जगह प्रसिद्धि मिलती है। फलदीपिका के अनुसार ऐसा जातक सत्य मार्ग पर चलने वाला अपने गुणों के कारण प्रसिद्ध अत्यंत धनी तथा राजा का मित्र होता है। (आज के परिवेश में राजा का मित्र अर्थात राजनैतिक व्यक्ति के साथ मित्रता)। *लग्न चंद्र* का का भी लगभग यही फलादेश है जातक यशस्वी, सुखी ,पुण्य, आत्मा एवं दयावान होता है। वैद्यनाथ  अनुसार जातक सदाचारी कर्तव्यनिष्ठ, विद्वान ,धनी और हाथ में लिए कार्यों को गर्व से पूरा करता है। आचार्य गर्ग  यही मत है उनके अनुसार जातक सुखी ,गुणी, चतुर ,सत्यवादी तथा धनवान होता है। पाश्चात्य ज्योतिषियों के विचार में भी दशम भाव में गुरु शुभ फल देता है। ऐसा गुरु भाग्य ,यश,मा

शनि व्रत का आख्यान महाऋषि पिप्पलाद अनुसार

शनिवार व्रत विधि विधान त्रेता युग में बारिश न होने के कारण भयंकर सूखा पड़ा उस समय कौशिक मुनि अपनी स्त्री तथा पुत्रों के साथ अपना निवास स्थान छोड़कर दूसरे प्रदेश में निवास करने निकल पड़े। कुटुम का भरण पोषण दूर हो जाने के कारण बड़े कष्ट से उन्होंने अपने एक बालक को मार्ग में छोड़ दिया ।वह बालक अकेला भूखा प्यासा तड़पता हुआ रोने लगा। वह एक पीपल के वृक्ष में रहने लगा। पीपल के फल खाकर और बावड़ी का ठंडा पानी पीकर वहीं पर वह कठोर तपस्या करने लगा। एक दिन नारद ऋषि वहां पधारे बालक ने उन्हें प्रणाम किया और आदर पूर्वक बैठाया। नारद ऋषि ने बालक के सब संस्कार किए वेद का अध्ययन कराया तथा साथ ही द्वारशाक्षरओम नमो भगवते वासुदेवायउपदेश दिया। बालक ने विष्णु भगवान का ध्यान कर उस मंत्र का जाप किया कुछ समय उपरांत उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान गरुड़ पर सवार होकर वहां पहुंचे। बालक ने भगवान से दृढ़ भक्ति की मांग की भगवान ने प्रसन्न होकर ज्ञान और योग का उपदेश बालक को प्रदान किया और अपने में भक्ति का आशीर्वाद देकर वे वहां से अंतर्ध्यान हो गए। भगवान के उपदेश से वह बालक महान ज्ञानी  महर्षि हो गया। एक दिन ब

जन्माष्टमी व्रत

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जन्माष्टमी को त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मान्यता है कि श्री कृष्ण भगवान का जन्म हुआ था। श्री कृष्ण भगवान के जन्म के बारे में बताया जाता है कि जिस समय सिंह राशि पर सूर्य और वृश्चिक राशि पर चंद्रमा था भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्ध रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। वासुदेव के द्वारा माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया था यही दिन संसार में जन्माष्टमी के नाम से विख्यात हुआ। इस व्रत के करने से शांति, सुख और निरोगी काया प्राप्त होती है। इस व्रत के करने से सात जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। व्रत के लिए पहले नहा धोकर स्नान करें ।व्रत का नियम धारण करें। सारा दिन भगवान का जाप करें वह ध्यान करें। *ओम वासुदेवाय नमः* मंत्र का जाप करें! चंद्रमा के उदय हो जाने पर चंद्रमा को अर्घ्य दे। रोहिणी, चंद्रमा ,वसुदेव, देवकी ,नं,द यशोदा और बलदेव जी की भी पूजन करना चाहिए। इससे सभी पापों से मुक्ति हो जाती है। इस व्रत को जो भी व्यक्ति प्रतिवर्ष करता है वह पुत्र, संतान, आरोग्य, धन- धान्य, आयुष्मान और राज्य सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। जिस घर में

देवगुरु बृहस्पति

*गुरु बृहस्पति* ब्राह्मण ,शिक्षक ,कर्तव्य, रथ, गौ,प्यादा सेना, जुड़ा हुआ धन, निधि, घोड़ा, दही बड़ा शरीर, प्रताप ,कीर्ति ,तर्क ,ज्योतिष, पुत्र ,फौज पेट की बीमारी, वेदांत ,पिता का पिता, गुरु जन ,महल, जेष्ठ भ्राता देवता, रतन व्यापारी ,देह का स्वास्थ्य सुंदर महल, राज्य की ओर से सम्मान , दान , धर्म, परोपकार, सखा ,डोलिया , व्याख्यान शक्ति, नवीन गृह सुख, मंत्र तीर्थ स्थान, स्वर्ग लोक जाना, सुखप्रद घर, विशेष ज्ञान, काव्य, सिंहासन, दूसरों के विचारो को जान लेना,कफ,धर्म में निष्ठा,स्वर्ण भूषण,वेद,शिव पूजा,पति,वृद्ध, सात्विकता, पुखराज आदि का विचार बृहस्पति से किया जाता है। दादा ,पति तथा पुत्र का विचार गुरु ग्रह से करना चाहिए।   यह ग्रह आकार में बहुत बड़ा है, इसके चारों तरफ अनेक उपग्रह हैं।यही कारण है बृहस्पति को महा पालक भी कहते हैं बृहस्पति गुरु का गौरव आकार में भी है और गुणों में।  दोनों में धर्म ,नैतिकता ,ज्ञान ,परोपकार ,त्याग, सात्विकता आदि उत्तम गुणों का प्रतिनिधित्व गुरु को कहा जाता है । गुरु से अभिप्राय हुआ आचार्य, अध्यापक या शिक्षक। इसी गौरव तथा शिक्षा के कारण गुरु एक कानून का ग्रह है क्यो

सावन मास---- शिव उपासना

 भारतीय संस्कृति में सावन मास की महिमा का वर्णन विशेष रुप से किया गया है।इस महा में शिव उपासना का अद्भुत महत्व है वैसे तो सदैव ईश्वर की उपासना अपना अलग ही महत्व रखती है पर सावन मास में शिव भक्ति में सब लीन होकर शिव का जाप करते हैं व्रत करते हैं कावड़ लाते हैं वह किसी भी प्रकार के बुरे कर्मो से दूर रहते हैं। सावन मास के सोमवार का व्रत विवाहित महिलाएं वैवाहिक जीवन में सुख - शान्ति के लिए । अविवाहित कन्याएं शीघ्र विवाह व सुन्दर पति के लिए सोमवार का‌ उपवास करती है। इस माह में रूद्र अभिषेक  का अतुलनीय महत्व होता है। जो अलग-अलग मनोकामना हेतु अलग-अलग द्रव्यों से किया जाता है। घी,दूध,दही, शहद, गंगा जल। आदि से मनोकामना पूर्ति हुते भगवान शिव को अभिषेक करवाते हैं ।उन‌के जीवन में सुख -शांति बनी रहे। महादेव शंभू को बिल्वपत्र व धतूरा भांग विशेष प्रिय है। वैसे तो सप्ताह के सारे दिन किसी न किसी ग्रह से संबंधित होते हैं परंतु सोमवार का सीधा संबंध चंद्रमा से होता है। चंद्रमा मन का कारक है इसलिए कहा जाता है  *चंद्रमा मनसो जात:* इसलिए चंद्रमा की शांति के लिए शिव  की उपासना की जाती है चंद्रमा शिव के मस्तक

परीक्षा

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परीक्षाओं का समय अभिभावक और छात्रों के लिए काफी तनावपूर्ण होता है।क्या करे परीक्षा में सफलता और तनाव को दूर करने के लिए? सुबह जल्दी उठकर स्नान कर सूर्य देव को जल दे। सूर्य देव का दर्शन करे ।जिस से शरीर में अग्नि तत्व सन्तुलित व आँखो को लाभ होता है। पढ़ने वाले कमरे में माँ सरस्वती की तस्वीर लगाए। यदि आप का मन या ध्यान यहाँ-वहाँ जाता है तो पढ़ने की जगह पर हल्दी की 3 गाँठ (ऊँ बृं बृहस्पतये नमः।।)का एक माला (108) जाप कर ,पीले कपड़े में पढ़ने वाले स्थान पर रख ले।इस से बच्चा एक जगह पर बैठकर पढ़ने लगेगा। गुरू बृहस्पतिदेव ज्ञान के कारक माने जाते है। बड़े-बुजूर्ग, शिक्षकों का सम्मान करे।जिससे गुरू की सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होगी। यदि सम्भव हो तो पीले रंग के कपड़े पहने या पीला रूमाल अपने पास रखे। शुक्ल पक्ष में केले की एक इंच लम्बी जड़ को पीले कपड़े में सिल कर विधि-विधानपूर्वक गले में पीले धागे में धारण करे। सकारात्मक सोच के साथ पढ़े और लगन से मेहनत करके खूब पढ़ाई करे। परिणाम आप के लिए शुभ होगा। पानी का खूब सेवन करे। माँ समान स्त्री को सम्मान दे

नम्बर 8

जी हाँ ,ये नम्बर शनि महाराज का है 8 जो लोग महीन की 8,17,26, तारीख को पैदा हुए होते है उनका मूंलाक 8होगा। वायु तत्व की प्रधानता वाला ग्रह शनि है।यह अंक कार्य सम्पन्नता को दर्शाता है। यह एक राशि में ढाई वर्ष तक रहता है।30 वर्षो के बाद ये ग्रह पुनः उसी राशि में प्रवेश करता है। यह ग्रह कठोर व अनुशासनप्रिय ग्रह है।किसी को बर्बाद तो किसी को आकाश की ऊंचाई तक ले जाता है। 8अकं लिखो तो दो गोले ऊपर नीचे ऊपर नीचे जुड़े दिखाई देते है।जो दो विरोधी विचारों ,बौद्धिकता, आध्यात्मिकता का मेल दिखाई देता है। यह अंक चार और चार को मिलाकर बना है जो एक और सकारात्मक और दूसरी और नकारात्मक दर्शाता है। मूलांक वाले जातक गम्भीर प्रवृति के होते है।ये लोग मूलांक वाले लोग काम।में लगे रहते है ।इन को समझ पाना थोडा कठिन होता है। शनि ग्रह के कारक तत्व आप इस नम्बर में देख सकते है। शनिदेव  मकर और कुम्भ  राशि के स्वामी है तथा इनकी महादशा  19 वर्ष की होती है। ।मनुष्य पर प्रभाव  शनि ग्रह अंक 8है।इसे से रोग,शत्रुभाव,आयु,मत्यु,जीवन,दुखों व अभावो की स्थिति निर्मित होती है।अशुभ शनि होने से मनुष्य के जीवन में आकस्मिक विपत्ति