शनि व्रत का आख्यान महाऋषि पिप्पलाद अनुसार

शनिवार व्रत विधि विधान त्रेता युग में बारिश न होने के कारण भयंकर सूखा पड़ा उस समय कौशिक मुनि अपनी स्त्री तथा पुत्रों के साथ अपना निवास स्थान छोड़कर दूसरे प्रदेश में निवास करने निकल पड़े। कुटुम का भरण पोषण दूर हो जाने के कारण बड़े कष्ट से उन्होंने अपने एक बालक को मार्ग में छोड़ दिया ।वह बालक अकेला भूखा प्यासा तड़पता हुआ रोने लगा। वह एक पीपल के वृक्ष में रहने लगा। पीपल के फल खाकर और बावड़ी का ठंडा पानी पीकर वहीं पर वह कठोर तपस्या करने लगा। एक दिन नारद ऋषि वहां पधारे बालक ने उन्हें प्रणाम किया और आदर पूर्वक बैठाया। नारद ऋषि ने बालक के सब संस्कार किए वेद का अध्ययन कराया तथा साथ ही द्वारशाक्षरओम नमो भगवते वासुदेवायउपदेश दिया। बालक ने विष्णु भगवान का ध्यान कर उस मंत्र का जाप किया कुछ समय उपरांत उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान गरुड़ पर सवार होकर वहां पहुंचे। बालक ने भगवान से दृढ़ भक्ति की मांग की भगवान ने प्रसन्न होकर ज्ञान और योग का उपदेश बालक को प्रदान किया और अपने में भक्ति का आशीर्वाद देकर वे वहां से अंतर्ध्यान हो गए। भगवान के उपदेश से वह बालक महान ज्ञानी  महर्षि हो गया। एक दिन बालक ने नारद जी से पूछा कि यह किस कर्म का फल है जो मुझे इतना कष्ट उठाना पड़ा इतनी छोटी अवस्था मैं क्यों ग्रह द्वारा पीड़ित हुआ ।मेरे माता-पिता का कुछ भी पता नहीं है फिर भी मैं अत्यंत कष्ट से जी रहा हूं। दया करके आपने मुझे ब्राह्मणत्व प्रदान किया और मेरे संस्कार किया। वह मुझे पिप्पलाद नाम दिया। देव ऋषि नारद जी ने बालक को बताया की यह पीड़ा तुम्हें शनि ग्रह के कारण हुई है और यह संपूर्ण देश उसके मंद गति से चलने के कारण उत्पीड़ित है। यह सुनकर बालक क्रोध में आया और उसने उग्र दृष्टि से देख कर शनि को आकाश से भूमि पर गिरा दिया जिसके कारण उनका पैर टूट गया वह पुगंं हो गए । उसके बाद सभी देवता वहां पधारें। ब्रह्मा जी ने बालक से कहा बालक आज से तुम्हारा नाम संसार में पिप्पलाद के नाम से साथ होगा जो भी कोई शनिवार को तुम्हारा भक्ति भाव से पूजन करेगा अथवा पिप्पलाद नाम का सिमरन करेगा उसे सात जन्म तक शनि की पीड़ा नहीं सहन करनी पड़ेगी और वह पुत्र- पौत्र गुप्त होंगे। शनि देव को पुनः आकाश में स्थापित कर दो। इनका कोई दोष नहीं है। पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए नैवेद्य ,हवन, नमस्कार आदि करना चाहिए ग्रहों का अनादर नहीं करना चाहिए। पूजित होने पर यह शांति प्रदान करते हैं। शनिदेव के लिए दान तेल का दान शनि की लो प्रतिमा बनाकर तेल युक्त लोहा पात्र में रखकर 1 वर्ष तक प्रति शनिवार को पूजन करने के बाद कृष्ण पुष्प, मे दो कृष्ण वस्त्र कसार, तिल‌का तेल,भात आदि से उनका पूजन कर काली गाय, काला कंबल, तिल का तेल और दक्षिणा सहित सब पदार्थ किसी योग्य को दान देने चाहिए। जो भी व्यक्ति प्रत्येक शनिवार को 1 वर्ष तक इस व्रत का पालन करता है वह विधि सत्यापन करता है उसे कभी शनि की पीड़ा नहीं भोगनी पड़ती। 
नोट-----यह महर्षि अथर्वण पैप्पलादसंहिता के द्रष्टा है। कथा व्रत महात्तम अनेक पुराणों में वर्णित है। इन्हें दधीचि ऋषि का पुत्र बताया गया है वह माता के नाम में भी थोड़ा बहुत अंतर मिलता है।
शनि मंत्र
1. शनि बीज मंत्र

ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।

2. सामान्य मंत्र

ॐ शं शनैश्चराय नमः।

3. शनि महामंत्र

ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।

छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥

4. शनि का पौराणिक मंत्र

ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।

छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।

5. शनि का वैदिक मंत्र

ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।

6. शनि गायत्री मंत्र

ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्

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