देवगुरु बृहस्पति

*गुरु बृहस्पति*
ब्राह्मण ,शिक्षक ,कर्तव्य, रथ, गौ,प्यादा सेना, जुड़ा हुआ धन, निधि, घोड़ा, दही बड़ा शरीर, प्रताप ,कीर्ति ,तर्क ,ज्योतिष, पुत्र ,फौज पेट की बीमारी, वेदांत ,पिता का पिता, गुरु जन ,महल, जेष्ठ भ्राता देवता, रतन व्यापारी ,देह का स्वास्थ्य सुंदर महल, राज्य की ओर से सम्मान , दान , धर्म, परोपकार, सखा ,डोलिया , व्याख्यान शक्ति, नवीन गृह सुख, मंत्र तीर्थ स्थान, स्वर्ग लोक जाना, सुखप्रद घर, विशेष ज्ञान, काव्य, सिंहासन, दूसरों के विचारो को जान लेना,कफ,धर्म में निष्ठा,स्वर्ण भूषण,वेद,शिव पूजा,पति,वृद्ध, सात्विकता, पुखराज आदि
का विचार बृहस्पति से किया जाता है।
दादा ,पति तथा पुत्र का विचार गुरु ग्रह से करना चाहिए। 
 यह ग्रह आकार में बहुत बड़ा है, इसके चारों तरफ अनेक उपग्रह हैं।यही कारण है बृहस्पति को महा पालक भी कहते हैं बृहस्पति गुरु का गौरव आकार में भी है और गुणों में। 
दोनों में धर्म ,नैतिकता ,ज्ञान ,परोपकार ,त्याग, सात्विकता आदि उत्तम गुणों का प्रतिनिधित्व गुरु को कहा जाता है ।
गुरु से अभिप्राय हुआ आचार्य, अध्यापक या शिक्षक। इसी गौरव तथा शिक्षा के कारण गुरु एक कानून का ग्रह है क्योंकि कानून के अनुसार कार्य करना और करवाना ही आचार्यों का कार्य होता है।
जिन कुंडलियों में गुरु तथा शुक्र का संबंध लग्न, लगने तथा द्वितीय ,द्वितीय से होता है। वह लोग वकील न्यायाधीश आदि कानून के कार्य करने वाले होते हैं। क्योंकि गुरु स्वयं बड़ा है वह प्रत्येक उस वस्तु को जिससे उसका संबंध हो बड़ा बनाता है। यही कारण है कि गुरु वृद्धि कारक है,और इसे परिवार की वृद्धि के प्रतीक पुत्र का कुंडली में प्रतिनिधित्व करता है ।बड़ा होने से गुरु बड़े भाई का प्रतिनिधि है। बड़ा होने से ही बृहस्पति स्त्री की कुंडली में उसका पति है।
गुरु और शुक्र यह दो ग्रह ब्राह्मण ग्रह कहलाते हैं ।जब इनका प्रभाव युति अथवा दृष्टि द्वारा लगन लग्नेश चंद्र लग्न चंद्र लगने पर कौन हो और अन्य किसी प्रकार का प्रभाव ना हो या बहुत कम हो तो व्यक्ति का जन्म ब्राह्मण कुल में कहना चाहिए। जब इन्हीं 2 ग्रहों अर्थात गुरु तथा शुक्र का युति अथवा दृष्टि द्वारा प्रभाव तृतीय भाव तथा उसके स्वामी पर हो अन्य प्रभाव से बहुत अधिक हो तो कानून की विद्या वाला व्यक्ति होता है। जैसे वकील बैरिस्टर साथ ही यदि दोनों ग्रहों का प्रभाव लगन लग्नेश पर भी हो तो कानों से निर्मित रोजगार भी चलाता है ।
गुरु का प्रभाव यदि लग्न ,चतुर्थ ,चंद्रमा पर हो तो मनुष्य में नैतिकता ,संतुलन ,गंभीरता, ज्ञान आदि सभी शुभ गुण रहते हैं ।
यदि गुरु छठे आठवें तथा बारहवें भाव में निर्बल होकर पड़ा हो और उस पर किसी की दृष्टि ना हो तो जिगर की बीमारियां  आदि रोग होते हैं।

उत्तर कालामृत /कवि कालिदास

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