रूद्राक्ष का महत्व


रूद्राक्ष शिवजी को अति प्रिय माना जाता है।इसके दर्शन, स्पर्श और जप मात्र से सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है।रूद्राक्ष की महिमा को देवी के समाने लोक कल्याण के लिए शिव जी इस प्रकार से कहा था।
सहस्त्रों वर्ष के तप के बाद भी मेरा मन सन्तुष्ट न हुआ।तब मैने अपने नेत्र बन्ध कर लिए तो मेरे नेत्रों से कुछ आँसू पृथ्वी पर गिर गए तो उनसे रूद्राक्ष वृक्ष की उत्पति हुई।
रूद्राक्ष को लाल,पीले काले धागे में पहनना चाहिए।
भक्ति-मुक्ति के इच्छुक व्यक्ति को इन्हें पहनना चाहिए।
शिव भक्तो को तो शिवजी व उमा का आर्शिवाद प्राप्त करने के लिए अवश्य पहनना चाहिए।
रूद्राक्ष के अलग-अलग प्रकार होते है ।आँवले के समान, सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।बेर के समान ,मध्यम तथा जो चने के समान अधम कहा जाता है।
बेर के समान रूद्राक्ष संसार मे सुख और सौभाग्य को बढ़ाता है।
आँमले के समान सारे अरिष्टों का नाश करता है।
रूद्राक्ष जितना बड़ा होता है उतना ही फलदायक होता है।
रूद्राक्ष धारण करने से सब पापों का नाश होता है।
जिस रूद्राक्ष में छिद्र हो वही सबसे श्रेष्ठ होता है।
जिस मे छिद्र कर पहने योग्य बनाया गया हो वह मध्यम फल प्रदान करने वाला बताया गया है।
बड़े से बड़े पाप रूद्राक्ष के धारण से नष्ट हो जाते है।
#ग्यारह सौ रूद्राक्षों को धारण कर मनुष्य शिवरूप हो जाता है।
#साढे पाँच सौ रूद्राक्षों का मुकुट धारण करता है वह भक्ति करने वाले पुरुषों मे महान है।
#इसी प्रकार से शरीर के विभिन्न भागो मे रूद्राक्ष धारण करने का अलग महत्व है जैसे:
शिखा में एक ,शिर में तीस ,गले में पचास,दोनों भुजाओं में सोलह -सोलह,मणिबंध (कलाई)में बारह,कण्ठ में बत्तीस,स्कन्ध(कन्धे)में पाँच सौ धारण करे।हाथ में बारह इस प्रकार से अलग-अलग धारण करने का महत्व शिव पुराण में वर्णित है।
रूद्राक्षकी माला द्वारा जाप करने से कई गुना पुण्य होता है।
रूद्राक्ष के प्रकार।
एक मुखी रुद्राक्ष भक्ति -मुक्ति को देने वाला शिव स्वरूप और ब्रह्म हत्यादि निवारक है ।इस से सब कामनाएँ सिद्ध होती है।
दो मुख वाले से गोलाकार -हत्या पाप निवारण होते है।
तीन मुख वाला साधनदायक है।
रूद्राक्ष की माला वाले को देख कर भूत-प्रेत-पिशाच, नकारात्मक ऊर्जा दूर भागती है।
चार मुख वाला स्वयं ब्रह्मा है। चतुर्वर्ग फल दाता है।कुल 14 मुख तक रूद्राक्ष होते है,ज्योतिष की दृष्टिकोण से ग्रह दोष निवारण मे प्रयोग किया जाता है।

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