क्या होता है मांगलिक?

मांगलिक को लेकर जनसमुदाय में भांति की भांति की अवधारणा व अन्धविश्वास कूट-कूट कर भरी हुई है।आज मेरे इस लेख से मैं आशा करती हुँ कि जो ये अन्धविश्वास फैला है वो समाप्त तो नहीं पर लोगो को शिक्षित करेगा व कुछ हद तक कम होगा।

जब भी विवाह सम्बन्धित मेल करवाए पौगा पण्डित से नहीं किसी योग्य ज्योतिष की सलाह ले ,क्योंकि ये सम्बन्ध दो परिवार का मिलन करवाता है ।हमारे संनातन धर्म में विवाह को जन्म-जन्मांतर का सम्बन्ध माना जाता है।

अब प्रश्न पर आते है मांगलिक क्या है ?

जब किसी जातक/जातिवाद की पत्रिका में भूमि पुत्र (मंगल देव) द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश में स्थित होतो तो यह योग मृत्यु की और ले जाता है।यदि पति की पत्रिका में तो पत्नी को यदि पत्नी की में तो पति को।

कुछ ज्योतिष आचार्य का मत है कि प्रथम भाव को भी इस में शामिल करना चाहिए क्योकि वो सप्तम भाव पर दृष्टि देता है।।

इन भाव को लग्न,चन्द्र व शुक्र तीनों से ही देखना चाहिए। अब इन्ही भाव में मंगल को लेकर ये दोष क्यूँ बनता है?अब प्रश्न ये है कि इन्ही भावो से ही क्यूँ मंगल दोष का विचार क्या जाता है।(कुछ ज्योतिष आचार्य का मत है कि प्रथम भाव को भी शामिल करना चाहिए क्योंकि ये सप्तम भाव पर दृष्टि देता है।) 1st house….यहा पर स्थित मंगल,विवाह के भाव सप्तम को,मानसिक शान्ति के भाव चतुर्थ को और विवाह की आयु के भाव ,अष्टम को दृष्ट करता है।

2nd house….ये भाव कुटुम्ब (परिवार)का होता है यहा पर स्थित मंगल देव अष्टम भाव को दृष्ट करता है,अतः विवाह के लम्बे समय तक चलने के लिए शुभ नहीं होता।

चतुर्थ भाव ….इस भाव से पारिवारिक खुशियों और मानसिक शान्ति को दर्शाता है यहां से मंगल, सप्तम भाव को दृष्ट करता है।

सप्तम भाव…विवाह का भाव होने के कारण सप्तम भाव पति या पत्नी को दर्शाता है। सारावली के अनुसार जातक /जातिवाद अप्रसन्न होगा।

अष्टम भाव ….यह भाव पति की कुण्डली में पत्नी, वह पत्नी की कुण्डली पति की आयु का प्रतिनिधित्व करते है।यह भाव विवाह की आयु का भाव भी है।अतः इसे मांगलिक स्थान भी कहा जाता है।ज्योतिष शास्त्र का सभी प्रमुख ग्रन्थों में अष्टम भाव में स्थित मंगल को अशुभ माना जाता है।(positive यह भाव नैतिक अथवा अनैतिक कोई ना कोई अतिरिक्त आय का स्त्रोत देता है)

द्वादश भाव…..द्वादश भाव शयन सुख अर्थात भार्या के साथ शारीरिक सम्बन्धों के सुख को इंगित करता है। यंहा स्थित मंगल, विवाह के भाव सप्तम को देखता है। मंगल की इन भाव में स्थित किसी ना किसी प्रकार से जीवनसाथी के लिए सही नहीं मानी जाती ये हानिकारक होती है।

अपवाद

कन्या लग्न के लिए अष्टम में स्थित मंगल, दीर्घायु देता है मेष लग्न के लिए भी दीर्घ आयु कारक होता है। मिथुन लग्न के लिए अष्टम भाव में स्थित मंगल उच्च का होता है अत दीर्घायु देता है।मंगल देव भूसंपत्ति का कारक और उत्तराधिकार के भाव के कारण अष्टम भाव का मंगल पैतृक भूसम्पति देता है।

मंगल दोष का नष्ट होना। यदि वर एंव वधु की ,दोनो की कुण्डली में मंगल दोष होतो वह स्वतः ही खत्म हो जाता है।

कुण्डली के 1,2,4,7,8,12 भाव मे से किसी भी भाव मे मंगल हो और दूसरी कुण्डली के उसी भाव में शनि,राहु,केतु स्थित हो तो यह दोष समाप्त हो जाता है। अष्टम भाव में गुरूदेव की राशियों का मंगल मंगल दोष नहीं देता। द्वादश भाव में शुक्र की राशि का मंगल, मंगल दोष नहीं बनाता। सप्तम भाव मे कर्क अथवा मंगल की राशि कोई दोष नहीं बनता । चतुर्थ भाव में स्वराशि का मंगल कोई दोष नहीं बनाता। द्वितीय भाव मे बुध की राशियों में कोई अशुभ नहीं होता ।सिंह और कुम्भ राशियों का मंगल दोष कारक नहीं होता है।यदि मंगल और चन्द्र, मंगल और बृहस्पतिदेव की युति होतो दोष को भंग माना चाहिए। शांति के उपाय इनमें कुम्भ विवाह,सावित्री पूजन और मंगल गौरी वटपूजन मुख्य है।इनको योग्य ब्राह्मणों की देखरेख में करवाना चाहिए।


Comments

Popular posts from this blog

देवगुरु बृहस्पति

दशम भाव में गुरु का फल

नम्बर 8